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श्रीविष्णुपुराण प्रथम अंश दूसरा अध्याय

                                  श्रीविष्णुपुराण                                  प्रथम अंश                     दूसरा अध्याय         चौबीस तत्त्वों के विचार से जगत की उत्पत्ति के क्रम का वर्णन तथा विष्णु की महिमा श्रीपपाशरजी बोले--जो ब्रह्मा, विष्णु और शंकररूपसे जगत्‌की उत्पत्ति, स्थिति और संहारके कारण हैं तथा अपने भक्तोंको संसार-सागरसे तारनेवाले हैं, उन विकाररहित, शुद्ध, अविनाशी, परमात्मा, सर्वदा एकरस, सर्वविजयी भगवान्‌ वासुदेव विष्णुको नमस्कार है जो एक होकर भी नाना रूपवाले हैं, स्थूलसूक्ष्ममय हैं, अव्यक्त (कारण) एवं व्यक्त (कार्य) रूप हैं तथा [अपने अनन्य भक्तोंकी] मुक्तिके कारण हैं, [उन श्रीविष्णुभगवान्‌को नमस्कार है]  जो विश्वरूप प्रभु विश्वकी उत्पत्ति, स्थिति और संहारके मूल-कारण हैं, उन परमात्मा विष्णुभगवान्को नमस्कार है विश्व...

श्रीविष्णुपुराण प्रथम अंश पहला अध्याय

             श्रीविष्णुपुराण                                              प्रथम अंश                               पहला अध्याय श्रीसूतजी बोले--मैत्रेयजीने नित्यकमोसे निवृत्त हुए मुनिवर पराशरजीको प्रणाम कर एवं उनके चरण छूकर पूछा-- “'हे गुरुदेव! मैंने आपहीसे सम्पूर्ण वेद, वेदांग और सकल धर्मशास्त्रोंका क्रमश: अध्ययन किया है हे मुनिश्रेष्ठ आपकी कृपासे मेरे विपक्षी भी मेरे लिये यह नहीं कह सकेंगे कि 'मैंने सम्पूर्ण शास्त्रोंक अभ्यासमें परिश्रम नहीं किया' हे धर्मज्ञ! हे महाभाग! अब में आपके मुखारविन्दसे यह सुनना चाहता हूँ कि यह जगत्‌ किस प्रकार उत्पन्न हुआ और आगे भी (दूसरे कल्पके आरम्भमें) कैसे होगा  तथा हे ब्रह्मन्‌! इस संसारका उपादान-कारण क्‍या है? यह सम्पूर्ण चराचर किससे उत्पन्न हुआ है? यह पहले किसमें लीन था और आगे किसमें लीन हो जायगा? इसके अतिरिक्त [आकाश...